मौटा पेट वारू तोम्बड़ू

आव्यू क्यं थकी, रस्तौ काईयौ तोम्बड़ा नो

जे न्हें मल्यौ म्हनै।

के म्हूं भी बणी जातौ तोम्बडू

नै वाजी उठतौ

म्हारा महादेव ने सांमे...

हेरते आव्यू, क्यं थकी आव्यू—

तोम्बड़ू बापडू, वाजवा हारू

वाजवा’ज हारू

तोम्बड़ू बापड़ू...

दीकरी!

म्हूं हुं करूं

दुखे तारू पेट

हमझं हूं के कैम दुखे—

भी जाणूं पण न्हें कई सके तू म्हनै

कैमके तू मौटी थई गई है

नै म्हूं भी अे न्हें पूछी सकूं।

अवे म्हारे थकी तारो दुख न्हें देखाये

हुती है तारी आई भी

मांदी पड़ी है बापड़ी!

अै दीकरी...!

हुं करूं म्हूं? बताड़... बताड़ के

कयं’ज बताड़...

हेंक करूं के दवा आलूं

जाणूं, अणां दुखण मअें हेंक न्हें थाये

पण करूं हुं-हूं तौ बापड़ो बाप अेकलो,

अेकलो नै अेकलो'ज।

दवा कैवी, म्हनै खबर नती

दीकरी न्हें देखाये अवे तारू दुखण...

कैमके म्हूं बाप हूं

नै कइये बाम अे हमझ्यू है!

दीकरी नुं दुख?

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : शैलेन्द्र उपाध्याय ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकाशन
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