सुणता आया,

थूं अबार टाबर है,

था’र में समझ कोनी,

म्हारै समझ नीं आई,

या समझ कांई व्है,

मां-बापू री हथाई होती,

दोन्यू फूलां लेवता मून्डो,

बातां करता,

एक-दूजै ऊं,

बापू, मां री चुप जाण जातो,

मां, बापू रा मनडा रो रंग पिछाणती,

म्हारा मां-बापू भोत समझदार हा,

बा कनै बोळी-बोळी समझ ही।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : तुषार पारीक ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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