बापू म्हारा!

म्हनैं पण अबै पतियारो हुयौ है

म्हारै जद कांधै माथै

घर-गिरस्थी रो बोझ पड़यो है।

कमा’र खावणो

अर औलाद रा

अलेखूं सुपना पूरणा

भोत अबखा है

थे बात भोत पैलां कैवता...

साच्याणी बापूजी

थांरी रटायोड़ी बातां

म्हारै ऊंडै हियै बैठ्योड़ी है।

जिकी बातां

थे म्हनैं रीस मांय आय’र कैवता

बै सागी बातां

म्हैं म्हारी ओलाद नैं कैवूं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोक चेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : संदीप ‘निर्भय’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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