मारी कांईं औकात

के मूं

आपनै केह सकूं

के आप मांनै

ठग रिया हौ

नस नस रौ लोही

माकण वणिनै

वणिक जी

पीर्‌‌‌‌‌‌या हौ।

आपरी कलम

खाता पाना पै नी नै

मांणी गरदन पै

छूरी ज्यूं चालै

मांरी घरी-गिरस्थी रा

सगळा माथा

करज खाता रा ओळ्यां में

फस्योंड़ा लटक्योड़ा है

मूं बापड़ौ आसांमी

मां को पेट

आप सेठ

मूं कांईं केह सकूं आपनै

देस रौ करसौ हूं

हुकम रौ गुलांम

भराऔ जठै हांमी

करूं-हां

कराऔ तौ करूं—ना

आपरी हां ना

मारी हां ना

आपरा भला में

मारौ भलौ

बोट पड़ै तौ

होट पड़ै तौ

पंचाती जाजम होवै

के तैसीलदार, हाकम होवै

मारै तौ मोटौ पेट

आप सेठ

मूँ कांईं केह सकूं आपनै।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : मोड़ सिंघ बल्ला ‘मृगेन्द्र’ ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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