म्हारा गऊ लावणी आगा
अे चिड़ी कागळा खागा
थे चालो क्यूं ना खेत में
गोफन फटकारो,
खेत में  द्‌यो हलकारो।। 

या काळी-काळी बादळी
चमकती आवै बिजळी
जाणै के करसी खोड़ली
थे चालो क्यूं ना खेत में
गोफन फटकारो,
खेत में  द्‌यो हलकारो।। 

अै बोली देखो गादड़ा
जाणै के करसी चांदड़ा
फसलां नै खावीं रोजड़ा
थे चालो क्यूं ना खेत में
गोफन फटकारो,
खेत में  द्‌यो हलकारो।। 

अै आंधी-अंधड़ आवै
खेती न ले उड़ जावै
मेहनत ले जावीं आपणी
थे चालो क्यूं ना खेत में
गोफन फटकारो,
खेत में द्‌यो हलकारो।। 

थे हल हंसिया ल्यो हाथ में
मैं भी चालूंगी साथ में
यो हळ हंसिया जद चलसी
आपा नै रोटी मिलसी
थे चालो क्यूं ना खेत में
गोफन फटकारो,
खेत में  द्‌यो हलकारो

जद पड़ै पसीनो रेत में
मोती सा उगसी खेत में
नेहरू जी भी या खैछा
व्है छै आराम हरामी
थे चालो क्यूं ना खेत में
गोफन फटकारो,
खेत में द्‌यो हलकारो।। 

या सिरसूं पीली फूलरी
लागै धरती री चूंदड़ी
आ हवा बसंती चाल री
सिरसूं कै लागी कातरी
थे चालो क्यूं ना खेत में
गोफन फटकारो,
खेत में द्‌यो हलकारो।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (जनवरी 1981) ,
  • सिरजक : बुद्धरंजन शर्मा ,
  • संपादक : महावीर प्रसाद शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
जुड़्योड़ा विसै