इण तरै आई-छाई

म्हारै माथै थूं

कै हिलोरा लेवै भोम

बायरा लखावै गावता

हरख री हिलोर

कण-कण मांय

बाजतो जावै

थारो तुणतुणियो...

थारी राग रा रागोलिया!

मांडै मांडणा

मानखै रै धीजै

आखिर आई तो है थूं

उडीक री आस

कै होम दिया डांगर...

डांगर तो कांई!

जायोड़ा खुद रा

छेकड़ जीवण री हूंस

नीं छोडी करमभौम

लाशां माथै सतरंगी

सुपना लेय’र

आखिर आई तो है थूं

बिरखा।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : विप्लव व्यास ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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