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काळ
प्रेमजी ‘प्रेम’
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काळ,
मन
को
भाव
छै!
काळ
को
भय,
मन
सूं
खाड
देबो
मरद
को
काम
छै।
तू
भी
छै
कईं
मरद?
स्रोत
सिरजक
: प्रेमजी प्रेम
,
प्रकाशक
: कवि री कीं टाळवीं रचनावां सूं
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काळ