दिन हाल आँथ्यो ही न्हँ
बीड़ी बुझगी
पाणी गयो पाताळ
चड़साँ रुकगी
बूँळ्या के नीचे बेठ्यो मनख
कुणकी न्हाळे बाट
दिन दूरा छे हाल-अषाढ का।