फागण रा फूलड़ा चुगता
बळ खावै अघोरी काळ
मूंडो निरखै काच में
काजळ पर कामण गवै
चुनरी लहरावै लाल गुलाल
रूंखड़ां नैं देख पूछै कई सवाल
भाई! पैल्यां सो रंग न चढ्यो?
न साख माई पुरखां-सी जान
झड़-झड़ पड़्या बेरुत का बैर
थान-सूरज सुखायो या
भाळ की है या चाल?
टैम घड़ी रौ दोस कोनी
विचारां नै कुतरता कीड़ा
जड़्यां तांई फैल्या
भविष्य रा
सांघणा जंजाळ!