फागण रा फूलड़ा चुगता

बळ खावै अघोरी काळ

मूंडो निरखै काच में

काजळ पर कामण गवै

चुनरी लहरावै लाल गुलाल

रूंखड़ां नैं देख पूछै कई सवाल

भाई! पैल्यां सो रंग चढ्यो?

साख माई पुरखां-सी जान

झड़-झड़ पड़्या बेरुत का बैर

थान-सूरज सुखायो या

भाळ की है या चाल?

टैम घड़ी रौ दोस कोनी

विचारां नै कुतरता कीड़ा

जड़्यां तांई फैल्या

भविष्य रा

सांघणा जंजाळ!

स्रोत
  • पोथी : Rajasthalee ,
  • सिरजक : अनीता सैनी ‘दीप्ति’ ,
  • संपादक : रवि पुरोहित
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