बाऊजी धोरा ज्यूं डीगा

अर मां पसर्योड़ी रेत ज्यूं

हमेस म्हनैं राखता कन्नै आपरै

रूंख रै बीज ज्यूं।

कदै-कदै होवतो मिलण

धोरा अर रेत रो...

जद सासरै सूं आवती बैन

ज्यूं छांटां, आंधी अर

आभै मांय चमकती बीजळी

तद लखावतो रेत सूं बण्या धोरा

अर धोरा मांय रेत अेक है

ज्यूं म्हैं हूं अंस ईं मरुभोम रो...

जकी सिखावै

चालणो

बोलणो

अर लड़णो

इण बळ-बळती भोम मांय

बरफ ज्यूं पिघळ-पिघळ’र जीवणो।

म्हारै अरथां नै अरथावती

मुगती रो मारग बतावती

रेत

इण रो कण-कण बसै है

म्हारै चारूंमेर

म्हारै मांय ऊभा है धोरा

अर पसर्योड़ी है रेत।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : विप्लव व्यास ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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