खुली भौम नै बांटै है
भीतां
रूंख अर लतावां
उगावा वाली धरती
उगावा लागै नांव-
यो वांरो बंगलो
या वांरी हवेली
यो म्हारो मकान
यो थांरो मकान
वो फलाणै रो घर
यो ढींकड़ै रो घर
वै वांरा झूंपा
वै वांरी टापरियां।
आंगण में उठवा लागै भींता
बणवा लागै ओवरा-मेड़ी
ओसारा-पटसाल
यो बड़ा भाई रो
यो बचेट रो
अर यो म्हारो
पोळ पिताजी री
रसोई मां री।
ओवरे में और उठे भींता
लकड़ी री, लोहे री
आलमारियां, कोठियां
अर तिजोरियां री शकल में
इण लोह-लक्कड़ री
भींतां में भरां
गाभा, जरूरी कागद-पत्तर
गेणो-गाठो, रुकम-भाव
नकदी रोकड़-परचून
ठांवड़ा-ठीकरा
तांबा-पीतल-स्टील रा
कलई वाला चमचमाट करता
कोई देख नीं ले
कोई चोर नीं ले
किणी चीज बस्त रै
पग नीं निकल आवै
अर वा एक पेटी सूँ
चाल'र दूजी में नीं
बड़ जावे
इण सारूं मोलाया
नीमण ताळा
एक कूंची वाळा
अै ताळा जड़ दिया
ओवरा रै, कोठियां रै
आलमारिया 'र तिजोरियां रै
इतरा पर भी नचींत
कठै हुयौ मन?
कूंचिया बांधी कनोरै
या टांकी गलै में
घाळ काळै-धोळै डोरे।
इतरो बंटवारो
इतरो सावचेती
पण कठै भरियो मन?
अबै सरू करां बंटवारो
बातां रो, खुसियां रो
तीज-तेवारां रो
मुसकानां रो, आंसुवां रो।
परमात्मा री एक भौम
कुण जाणै बंटगी है
कितरा टुकड़ां में
एक अखण्ड आभै रा
हुया है कितरा खण्ड
अर इण बंटवारै नै
आपीं गरब सूं मिनख-जूण केवां हां
वाह रे पाखण्ड
मौत मुळकै है मिनख री
सूझ-बूझ माथै
पूछै जिन्दगी नै
और कितरी बंटसी बेनड़
और कितरी घटसी?