लोगां रै सागै सागै

कदैय खत्म नीं होवण वाळी

दौड़ मं

मैं जद सूं

भैळो हुयौ हूँ

अेक अेक कर’र

सुख सुविधा री

अणूती चीजां

जुटातो जा रह्यो हूँ।

सगा-संबंधी

मेळी-मिलतारू

दिनूं-दिन

सै समरथ...

मेरी तरां

मुळकणै रा जतन मं हैं

पण, मुखौटा री तिरासद’क

इब खैं सूं

सहज रूपां

मुळक्यो नीं जावै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (जनवरी 2021) ,
  • सिरजक : हरदान हर्ष ,
  • संपादक : शिवराज छंगाणी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (बीकानेर)
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