आज दाडा लगण हेता कवि

मंच ऊपर सड़ी नै

गरू फाडी-फाडी नै फाँकी ग्या

पण देव कैया मनक में

एकता नो भाव लावी नें ग्या

अमारे नवा मुटियाडं नी बदलाई गई है अक्कल

अमारी आणीस अक्कले बदली दी दी हिन्दुस्तान नी शक्कल

हरम आवती नती अवें मुटियाडँ ने

जे जौवो ऐं बणावें मुटी-मुटी पार

अरे! कईक वेरे तो ओडाढ़ो आणी माँ नें

वाली-वाली एकता नी शाल

दाडा ये आत्मी जयेंगा ने अदियोड थई जोगा

भेगां थावा नु तो नाम ने लोगा

वकत् है थोडो ने रगत है वदारे

के ढूरो तमे रगत ने माँ ने पारे

लड़ाई-झगड़ा नो नके वदारो ज़ार

अरे! कईक वेरे तो ओडाढ़ो आणी माँ ने

वाली-वाली एकता नी शाल

एकता में रई ने देकी तो जोओ भाई

एकस् हो हिन्दू मुस्लिम ने सिख इसाई

नके लूटो आणा वगीसा ने दुष्ट थई ने

देश ने नके खो तमे उदाई थई ने

विदेशी जोर तो करे है आपडो पीछो

केम देकाडे आपडे देश ने आटलो नीसो

अखण्ड ने खण्ड करवानी कैनी है चाल

अरे! कईक वेरे तो ओडाढ़ो आणी माँ ने

वाली-वाली एकता नी शाल

आय तो घणी देवात्माये लिदो है जनम

ती आणी जगा में अमृत भी कम

आणा ऐकता ना अमृत ने पी जुओ

देश नी हेत झगडं नी जड ने छुओ

पसे देको आणा देश ने है कुण कापे

कइयो दुष्ट बणे आणे आपडे झापे

देश में झगडा नु नाम कुणे ने लेगा

करी नाके बडका तो देश पासू मली जायेगा

तमेस तो हो आणा देश ना नाना मोटा लाल

नके करो अवे तो आणा देश ने हलाल

अरे! अवे तो ओडाढ़ो आणी माँ ने

वाली-वाली ऐकता नी शाल।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : महेश देव भट्ट ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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