पृथ्वी कामेतण

सूरज जिण री

मांग भरै,

जळ जिण रै

महावर लगावै,

बायरो जिणनै

चूनड़ी ओढावै,

अर आभो!

आभो जिणनै काळजै लगावै।

स्रोत
  • पोथी : उतरयो है आभो ,
  • सिरजक : मालचंद तिवाड़ी ,
  • प्रकाशक : कल्पना प्रकाशन बीकानेर
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