अे दुनियां आधी !

कदै बणैला थूं धणी

मिनख री।

अरड़ावै

करड़ावै

अर केवै है खुद नै ईज

थारौ धणी !

बोल बावळी !

लाज सरम रो ठेको

कांई छूट्यो है थारै ईज नांव ?

परम्परा री सांकळां में

कद तांई रेवैली उळझ्योड़ी

कद मंडैला थूं साम्हीं

कद करैली धमक

कद तांई रैसी

दब्यौड़ी पगथळ्यां हेठै

उण जीव रै

जिण नै जण्यो थूं खूद!

थारो ठाडो रगत

क्यूं नीं उबळै

क्यूं नीं उतार नाखै

गाभा गोलीपै रा...

क्यूं नी मांडै

थारी खिमता सूं

नवो चितराम...

नाख!

उखाड़!!

खिण्डा दै!!

परम्परा री कूड़ी भसम...

छाप थारी

अणमिट घड़त

जुग रै भाठै

थारै अर थारी

लुगाईपणै खातर

अे दुनिया आधी!

मून क्यूं है

बोल तो सरी !!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : संजय पुरोहित
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