बुझण रौ इत्तौ गम नीं

जित्तौ के

इण तरै सूं बळण रौ!

जिका के बळण वाळा है

वां सगळां नै

बगत आयां

अेक-न-अेक दिन

बुझणौ तौ है इज!

फरक बुझण में नीं है

फरक है तौ फगत बळण में

इज कारण है के

हीयौ हरमेस

मैसूसतौ रैवै

इण तरियां क्यूं व्हियौ?

कित्तौ सारथक है

अेक दीय रौ बळणौ!

रात भर

अेक सैज गति सूं

मुधरौ-मुधरौ

बळतौ रैवै

छिण-छिण तेल छीजै

पण चिनौक-चिनौक

बाट बळे

पण तिल-तिल

सरू-सरू में

कित्ती तेजी व्है

उणरै बळण में

कित्ती जवान व्है

उणरी लौ

उणरी आंच

उणरी रोसणी!

नजीक गयां

जाणे भसम व्है जावांला

पण समै रै साथै

औस्था रै मुजब

धीमै-धीमै

वा इज लौ

वा इज आंच

वा इज रोसणी

कम व्हेती जावै

अर पूगै अेक अंतराळ रै बाद

वौ उण दसा मांय

जिकी के

बुझण री है!

उण टैम बाट

चड़-चड़ कर'र

उणरी घोसणा करै

इज वजै के

बुझती वेळा अेकाअेक

नी लखावै घोर अंधार!

पण बळणौ अचाणचक

भबकै रै साथै

धपळ-धपळ

अर बुझ जावणौ

छिण भर में;कित्तो खारो व्है!

अेक धपळकौ

अर उणरै बाद

च्यारूंमेर

अँधारघप्प!

निरी ताळ तांई

उण अथाग समंदर में

गोता खावती दीठ

किणी सहारै री बाट जोवती रवै!

दुख क्यूं व्है ?

अेक सवाल

जिको बरसां सूं

म्हारै हीयै रै

मांय-ई-मांय

गैरीजतौ रैयो है

म्हारी जिनगांणी में

आज लग

कित्ता अैड़ा चानस आया

जद के म्हैं

इण सवाल रो जवाब

सिवाय मून रै

की नीं दे सकियो

पण आज

जद के म्हारी आंख्यां

दूर-दूर ताई गैरोजियोडै

उण अंधार मांय

की देखणजोगी व्ही है

म्हनै लखावै के

म्हारै कनै अेक जवाब है!

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : जुगल परिहार ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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