कोई बात कोनी

झूळड़ ली

तो झूळड़ ली

तूं देखतो जाई

रुत सारु फेर लाग ज्यैई

म्हारै अंतस रै दरख़त माथै

हेत री निमझर

बिस्वास री डाळी माथै

हरी-हरी

पीड़-पळकती

तूं भळै आई

आंवतो रैयी

अलबत ही दरख़त हूं

बेगो सो

के मरूं।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : देवीलाल महिया ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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