म्हैं सूंपणी चावूं

सौ- कीं

पण जग

सवाल खड़ा करै।

म्हें पडूत्तर देवणी चावूं

पण जग

सवाल माथै सवाल खड़ा करै।

सोचूं -

म्हारौ सूंपणौ महताऊ है

कै सूंपण माथै खड़या होया

सवालां रौ पडूत्तर देवणौ।

सोचूं म्हैं

उण जीव नै

जकौ सूंपण नै

सब सूं मोटो मानै।

स्रोत
  • पोथी : थारी मुळक म्हारी कविता ,
  • सिरजक : गौरी शंकर निम्मीवाल ,
  • प्रकाशक : एकता प्रकाशन
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