उजास दियाळी रो

सिरकारी बंगलां माथै लट्टू लागग्या,

आंख्यां चूंधीजगी,

उजास कांईं भाव पड़्यो?

सगळै देस मांय लट्टू जूप ग्या,

इण खरचा रो अनमान म्हारै सूं नी लाग्यो,

पण छाती ठोक,

डंका री चोट,

इतरी बात जरूर कह सकूं,

कै ईं पईसै सूं

पांच सैंकड़ा मिनखां नै

जीवतां ताईं रोटी लगावण मिल जातो।

इण खरच सूं ही काम पूरो नीं हुयो

अजे ताईं तो केई अणूंता जलसा धके आसी,

उणा रो अजर अजे बाजिब नीं,

इण दिवळां री रात

भींयो भील आपरै टाबरां रो

पेट नीं भर सक्यो!

उण री टपरी में अंधार घुप्प हो

पण इण रो फिकर कुण करै?

घी में घी सगळा ठरकावै,

क्यूं कै दीयाळी है पइसै आळां री।

स्रोत
  • पोथी : हिवड़ै रो उजास ,
  • सिरजक : ओमदत्त जोशी ,
  • संपादक : श्रीलाल नथमल जोशी ,
  • प्रकाशक : शिक्षा विभाग राजस्थान के लिए उषा पब्लिशिंग हाउस, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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