बंधीया साच री गांठ
खोलण सारू
कलम उठाई
पण जांणिया-अण जांणिया
अेक कूड़ी कविता बणाय
गांठ माथै गांठ फेर-गांठड़ी रै लगाय दी
अेक गांठ सूं बोझ बधियौ
कै नीं बधियौ?
म्हनै लखावै
म्हैं बोझ सूं दबियोड़ौ
गांठड़ी ने उखणियां-उखणियां
बिना बिसाई खायां
मिनखां री भीड़ रै बिचाळै
डीगरां-डीगरां
सिरकतौ जाऊं
म्हारै बधापा रौ तोल औ-इज है
हमेस म्हारा पग रौ पंजौ आगै
नै अेडी लारै कांनी रैवै
औ मिनखां-दळ हळबळ सूं चालै
म्हारी डीगरां रौ अंत कठै, कुण जांणै?
अण देख्यौ-अण सुणियौ डर
म्हनै आ घेरै
चौरास्ता माथै खांपण ओढायौड़ी
किणी सचबोला री लास
म्हनै खांपण उघाड़ बतावौ
म्हनै वौ आदमी कीं सैंधौ-सैंधौ लागै
जीभ माथै नांव
पण घोख-घोख कायौ हुयौ
औ कांई हुयौ?
औळखांण कठै रुळगी, याद नीं आवै
ई-नै-ई कैवै है
‘डर होवै उठै दिन आथमणौ’
सूरज लुकियां पछै
अणगिणिया साळकिया
हुक्की-हुक्की सूं
म्हारौ पुरांणौ नै छेहलौ विस्वास खोस
म्हनै साव निबळौ-नांड कर न्हांखै
कदैई-कदैई म्हारौ आपरौ बोलियोड़ौ कूड़
ने कदैई-कदैई म्हारौ आपरौ बोलियोड़ौ कूड़
ने कदैई-कदैई
पराया कूड़ रै बोझ सूं दबियोड़ौ तपियोड़ौ,
झूंझळ खाय, आपै बारै आय
गांठ फाड़, काढणी चावूं साच
पण अैन मौकै, दळ-बळ रौ धक्कौ लागतां ई
छूटती डीगरां ने फेर पकड़लूं
कै’णा में कीं नीं आवै
उण बेळा
कै-ई दूर-कै-ई ताळ
कै तौ सम्भळूं हूं कै गम जावूं हूं
पण इत्तौ जांणू हूं
कै अलेखां रै बिचाळै
खुद ने सोधूं, नै बैवूं हूं
हरेक रै माथै है, गांठ
अेक इज नपिणां री
पण बोझ रौ लखाव अेक जैड़ौ कठै!
पाछल फोर
किणीं ने देखण री
मोकळ कोनी
तौ गुद्दी देख्यां-देख्यां, कियां व्है पिछांण
मिनख रै उणियारा री
म्हारा रूं रूं सूं परसेवौ निसरै
उण मांय म्हारा बडेरां री बास
औ बिचार
म्हनै अेकलौ कर दे
आं मिनखां-म्हैं अेकलौ
म्हनै आ कुण समझावै
कै ओ बोझ साच रौ है, कै कूड़ रौ
हरेक माथै है बोझ
इणमें सैं हुंकारौ देवै
म्हारैं हुंकारै लायक बात कोनी
किंयां हुंकारौ देवूं
म्हैं-ई-ज घड़ूंला, म्हारा हुंकारा री बात
नीं घड़ीजै जित्तै
म्हनै बोलौ
अलेखां में, अेकलौ-अेकलौ चालणौ है
तपती जेठ, झटपटी लूंवा झेली है
सुपना रा सावणिया वास्तै-कै
सावणियौ बरसैला-हरियाळी सरसैला
मीठा अर मीठा फळ,
कमतर सूं निपजैला
इण बिध, म्हारा अणभवां नै घौळ
दुखां नै, लूवां नै मीठी बणाय लेवूं
धर कोसां, धर मंजलां, डीगरां-डीगरां चौलतौ रैवूं
कदास, आं इत्ता-इत्ता सुपना रै मांय सूं
अेक-आध सुपनौ तौ सांम्ही आय बाथ घालैला
अबै म्हारै पैदा होवण वाळी संतान
थंनै म्हैं, कीं ई नांव नीं देवूंला
तौ इज थूं
इण गांठड़ी सूं
छुटापौ पावैला
थारी गांठड़ी
अबै थूं-ई बांधैला
पीढी-दर-पीढी री गांठ सूं थंनै
ईयां बचाय लेवूंला
छुपाय लेवूंला म्हारी ओळखांण
थंनै नुंवी नै निगोठ ओळखांण देवण सारू
जद म्हैं धूड़ूं
तद थूं चुणीजतौ दीखै
जद म्हैं बिखरूं
तद थूं भैळौ होय-बणतौ दीखै
जद म्हैं उखड़ूं
तद थूं जड़ियां पांगळतौ दीखै
कूंचा-दर-कूंचा-भंवतां, भंवतां
इत्ती ताळ आ गांठ, औ बोझ
म्हनै म्हारौ, अंस बणतौ लखावै
पण आ थूं नीं म्हारी सन्तान
म्हारौ अंस व्है-तौ-व्है
थारी ओळखांण
अबोट नुवीं निकोर होवैला
म्हारी सन्तान थंनै बाप रै नांव री
अबै
जरूरत नीं पड़ैला।