पति-पत्नी मैं रहया,
करतो अक्सर मन मुटाव।
दफ्तर स्यूं आ'र पति,
खोल'र बैठ जावंतो किताब।
पत्नी कानी बो,
आंख बी नीं उठांतो।
ओ ई काम पत्नी नैं,
कोनी सुहांतो।
एक दिन बोली,
हे भगवान तू मन्नै,
लुगाई नी किताब घड़तो।
फेर कदै तो मेरो पति,
मन्नैं पढ़तो।
पति भी बोल्यो,
हे भगवान तूं ईन्नै,
किताब नी, डायरी बणांतो।
जद भी नयो साल लागतो,
मैं नूंई ले गै आंतो।