जिण भासा री जड़ धरती में

बी में हुसी मिठास,

बा भासा ही व्यक्त कर सकै

धरती रो हिंवळास

जीव-जिनावर पान, फूल, फळ

डूंगर, समदर, गांव,

माटी रो मन समझ घड्या है

भासा औसै नांव।

गाछ, पेड़, द्रुम, दरखत सै स्यूं,

एक रूंख रो बोध,

पण धरती री बणगट सारू

सगळा संबोध।

कविता, का'णी, लोक-कथावां

गीत, निरत, चितराम,

जिसी जठै री कुदरत बी रा

अप्रतिमान ललाम।

रीत-भांत, तेंवार, मानता

खान-पान पैरान,

रितुआं री इच्छ्या परगास

भासा इस्यो विधान।

आज री कवितावां

देह आतमा ज्यू धरती रो

भासा स्यूं सम्बन्ध,

आं नैं अळघा करणा चावै

बै

मूरख

मतिमंद।

स्रोत
  • पोथी : आज री कवितावांं ,
  • सिरजक : कन्हैया लाल सेठिया ,
  • संपादक : हीरालाल माहेश्वरी, रावत ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍सारस्वत ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : pratham
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