कोनी रैवण देवै

घर में मां नै

पेट री झाळां

कर काळजौ करड़ौ

काळजा री कोर सारू

झाल घरधणी रौ हाथ

निकळगी ही मां घर सूं

ले हाथ में करम री माळा

लारै रैयगी ही

भोळी उमर री

थळी ऊभी

उणरै जीव री झड़ी

साव एकली!

जिणरी बाळ-दीठ

धोळौ-धोळौ सगळौ

दूध इज जाणती ही

नीं जाणती ही वा

इण दुनिया रौ काळौ बदरंग चै'रौ

जकौ छळ लीनौ हो उणनै

अर हुयगी ही वा विवस

करण नै आपघात।

पण अचरज

कै किकर जांणगौ हो वो

फगत चवदा बरस रौ

पड़ोसी बाळक

प्रकृति रौ सांच

क्यूं ऊठगी ही उणमें

काम री झाळ

बखत सूं पैला?

इणसूं पण बधनै

घोर इचरज!

कै, किकर ले लीनौ हो वा बाळकी

आपघात रौ करड़ौ मारग

छै बरस री भोळी उमर में?

खरी दीठ सूं जोयां

काळजै करौत बावती

इण घटणा रै धुर में

निजर आवै - पइसौ

जकौ गरीबां री

विवसता बण'र

लंघाय देवै मां नै

घर री थळी तौ,

धायां री लालसा बण'र

पुरसै

सिनेमा टी. वी. अर अंतरजाळ रै मारफत

वासना रौ थाळ

अर साथै बतावै

आपघात रा भांत-भांतिला तरीका।

कराय दीनौ अबोध बाळकां नै बोध

परदा री छांनैड़ी बातां रौ

नित छापै है अखबार

अपराध जगत रा किस्सां नै

लूण-मिरच लगाय

एड़ौ लखावै कै

जलम-जलम रा भूखा

धन लोलुप

सिक्कां रा साग नै

नोटां री रोटी सूं खाय

धापणी चावै है।

धन व्हैगौ है आज

सैं सूं लूंठौ धरम

कदास इणीज कारण

स्सैं मून धार राखी है

देखै है लिछमी रै खातर

लुटीजती लिछमी नै

चुपचाप!

स्रोत
  • सिरजक : धनंजया अमरावत ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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