नहिं रूकणो रै राज, सभा करणो—नहीं रूकणो!

यो कैसो रै हुकम लगायो, परजा—मंडळ नहीं चलणो।

नहीं रूकणो!

परजा—मंडळ है रै परजा को, फिर क्यों चावै बंद करणो।

नहीं रूकणो!

इसो हुकम कर भूल करी तैं, नहीं काम थो यो करणो।

नहीं रूकणो!

अब या परजा मानै रै नाहीं, कठिन काम ईं को डटणो।

नहीं रूकणो!

तू जुल्मां पर उतर पड्यो है, कैसे होवै फेर बचणो।

नहीं रूकणो!

अन्यायी तो रै कोई बच्यौ ना, किस विधि तेरो हो डटणो।

नहीं रूकणो!

सभा होण सैं रै कदे रूकैं ना, झूठौ देखो क्यों सपणो।

नहीं रूकणो!

'पंडित' कह निश्चय हारैगो, परजा से कदै लड़णो।

नहीं रूकणो!

नहीं रूकणौ रै राज, सभा करणो।

नहीं रूकणो!

स्रोत
  • पोथी : स्वतंत्रता संग्राम गीतांजली / स्वतंत्रता आंदोलन की राजस्थान प्रेरक रचनाएं ,
  • सिरजक : ताड़केश्वर शर्मा ,
  • संपादक : मनोहर प्रभाकर / नारायणसिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थान स्वर्ण जयंती समारोह समिति, जयपुर
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