नाहर दन्त देखबा हाळा,
रण में रगत बहाबा हाळा,
कुण का लाग्या सराप-
अखन काया की या गत होई।
कांईं होग्यो म्हारा भारत-
थारै ठाम-ठाम पै लोही॥

अस्सी घाव भरा-रोजी छा,
तो बी पग पाछा कोनै छा।
सागसी ऊबा रहग्या,
कल्ला-महल ढर् या थोड़ी छा॥
धरती खसक गई पांवां सूं-
जद या जहर-खुरानी होई। कांईं...

जे नहीं अणीं टूटती भाला की,
नहीं मणि छूटती काळा की।
इतिहास बदलग्यो होतो,
नहीं कुर्बानी होती झाला की॥
तू तो केसरिया करग्यो छो-
पाछै कतनी साका होई। कांईं...

सरणागत रक्षक प्रण पाळ्या,
हम्मीर सरीखा क्यूं हाल्या।
ऐरी रंणत-भंवर की भींत्याओं,
कुण नै कुल्हड़ मं गुड़ घाल्या॥
डोड काटग्या दीखै थारै-
डोडीवांण हकीम कन्दोई। कांईं...

खेली चूड़ावत नै होळ्यां,
हाड़ी को माथो ले झोळ्यां।
घर-घर वीर बधावा गूंज्या,
लागी सत्-सतियां की ओळ्यां॥
धरम की धजा रखाणीं ऊंची-
पण पाग न नीची होई। कांईं...

सामै आबा पहली दरपण,
जौहर कर लेती जे पदमण।
सत् को रूप हलोळां लेतो,
आडै आता क्यूं नहीं भगवन्॥
धन्-धन् गौरां-बादळ थांनै-
म्हांकी धज राखी मन-मोही। कांईं...

बैरी को पूठ दखाजाबो,
म्हूं सस्त्र-हींण छूं कह जाबो।
कमजोरी बणगी धरम-जुद्द,
सत्रु को जिन्दो रह जाबो॥
घर मं हार् यो म्हारा वीर-
पराया की कद हिम्मत होई। कांईं...

देदी ज्यान आंण कै खातिर,
लछमी दुर्गा असी सपातर।
सगुन सुहाग लुट्यां पाछै बी,
तेगो तोल्यो होई न कातर॥
परणेती पडळा का सोगन खा-
कतनीं रण खेतां सोई। कांईं..

जद बी याद करूं तो रोल्यूं,
कै देहळ पै पग धर सोल्यूं,
नाखूंनां सूं खांचै खून,
गुरू-गोविन्द पन्ना की ओळ्यूं॥
कहीं मूंहन्डा सूं राज करै ज्यानै-
लाशां पै रोटी पोई। कांईं…

छा नै धरती का जाया बी,
हम्मीद हुसैन भाया बी।
पाछै बता फेर कुण नै बलस्या,
रण जीत्या मोती पाया बी॥
कण्ठ कट्या कुण का अर्  कुण की -
जै-जैकारां होई। कांईं

काळजे सालै रह-रह हूंका,
हाल करगिल मं घणां बजूका।
उजड़्या कुम-कुम काजळ गोटा,
लाल गणाऊं कूंखा-कूंखा॥
लीप्या-पुत्या घर बगड़ गया-
अतनी मां-बहणां रोई।
कांईं होग्यो म्हारा भारत,
थारै ठाम-ठाम पै लोही।
मूंहडै बोल बताजा रबी-रबी-
थारै संग कांईं होई॥




स्रोत
  • सिरजक : विष्णु विश्वास ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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