राहू राह बदल कर न्हाटो

सोने रो सूरज चढ़ आयो

सिद्ध जोग, इमरत री घड़ियां

आच्छी पुळ में लागो पायो

गायां ढींके, सॉड दड़ूके

शगती, सुरसत, सूती जागे

घर घर धन रा धोरा लागे।

नहचो राख, सोच कर चालो,

आगे-पीछे री सुध राखो

चूक्यां सूँ चोरासी आवे

ठीक ठिकाणे इमरत चाखो

ठोकर एक सैस बुध लावे

ऊपर चढ़णो काचे धागे

घर घर धन रा धोरा लागे।

इण धरती पर स्वर्‌‌‌‌ग उतारो

मुसकल री बातां सब झूठी,

बहमी वणकर वगत गाळो

करतब रे बळ बाँधो मुट्ठी

हिम्मत रा फळ रूच-रूच खावो,

लिछमी घूमर घाले आगे

घर घर धन रा धोरा लागे।

बीतोड़े जुग रा झैरावा

आगे रा मनसूबा आवे,

(पण) समझ बूझ री बात एक है

सो’ रो पचे जितोई खावे

सीख सॉतरी सौ दुख टाळै

जेवां-भरी राखणी सागै

घर घर धन रा धोरा लागे।

थोड़ा दिन काठा हू काटो

रिध-सिध भरिया गाडा आवै

हर्ष-चाव रा बाजा बाजै

लाख लाख भुज-भुज रा पावै,

मिनख-मानवी माया माणे

काचा-कूड़ा पड़िया गाघे

घर घर धन रा धोरा लागे।

स्रोत
  • सिरजक : कान्ह महर्षि ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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