गिरस्थी

गिरस्थी रो अरथ
लुण, तेल, दौड़-भाग करणो 
कदै जागतां हो सोवणो
कदै गोवतां ही रोवणो!

 

जीवण चक्कर

रातनै चली जावण दयो
पछै
एक नूवों दिन आवण दयो
लहर 
जकी अबार ही भचभेडा खाय र गई है।
उण सरीखी ही
लहर सूं एकर भळै 
भचीड खावरण दयों! 


लोकतंत्र

लोकतंत्र में
जनता री आबाज
जाणै
घुट्योड़ै बंद कमरे में
'टाइमपीस' रो टक टक..!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : राजेंद्र प्रसाद माथुर ,
  • संपादक : माणक तिवारी "बंधु"
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