पगरखी पग री

रूखाळी करण सारू होवै

पण अचरज इण बात रो

के आपां रै चेतै

पग आवै नीं

पगरखी चेतै बसे

चौघड़ी

अर आपां

उणरी रूखाळी करण ढूंकां

पग बापड़ौ निसांस नाखै

खुद रै दुभाग माथै के

आपां री बुद्धि माथै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : भगवतीलाल व्यास ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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