घणा दिनां पछै

पीहर आयोड़ी छोरी

जावै खुद री भावजां साथै खेत

देखै, हेरै मारग मांय

खुद रै बीतेड़ै बगत रो हिसाब

होळी वाळै धोरै री ओट मांय

आली रेत माथै पड़्या कीं निसाण

टंटोळै खुद रै डील

अर मन ऊपर वां छिणां

मंडेड़ा कीं मांडणा ई।

पीहर आयोड़ी छोरी

भाजनै चढ जावणौ चावै

वीं पुराणै माळियै

जिकी री पेड़्या सूं जुड़ती

भींत माथै पड़ी पोथ्यां मांय

ल्हुकोयनै धरीजी है कीं प्रीत-पानड़ी

उतरती-चढ़ती

वा मन मन बांचै

वीं पुरांणै पड़तै कागद माथै

बेसी जाडी हुवती स्याही पाण

उभरतै आखरां नै।

पीहर आयोड़ी छोरी

देखै अब खुद री भांत

चिड़ी-बल्लो खेलती

काकै री बेटी भैण नै

जिकी वळा-वळा थमनै, लुळनै

देखै खेलण री चिड़ी रै ओळावै

हीयै री हजार आंख्यां सूं

नीं ठाह कित्ती भींतां ऊपरांकर

कुदती-उडती जावती चिड़कल्यां नै!

पीहर आयोड़ी छोरी

ऊभी रैवै रोजीनै हांडी बगत

चौखट माथै सिर टेक्यां

नीं ठाह कांई हेरती-सी

नीं ठाह कांई उडीकती-सी

वीं देहळी माथै फणियां ताण

जिकी देहळी नीं लांघीजी कदै

घणी चावना पछै वीं सूं।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : कुमार अजय ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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