(अेक)

दीवै री बाती में
जठै तांई है लौ

बठै तांई है
ऊभो होय'र
अंधारै सूं
जूझणै री खिमता

तेरी ओळ्यूं बा इज लौ है
म्हें ई ऊभी बाती ज्यूं जगती
अर जलम मेरो दीवो-सो।


(दो)

घर री मंडेर्यां रा दीवा मंदा पड़ जावै
जद देखै पाड़ौसी रै घरै लटकती
लाइटां री लडूयां डोळयां पर
आवै आथूणी पून रो झोलो
निंद जावै आंख्यां
मंडेरी पर सूं चिलकता माटी रा दीवां री।

(तीन)

फळसै रो दीवो
फकत च्यानणो ई नीं हुवै,
ओ है घर रै मांयनै रो अपणेस
चिलकतो च्यारूंमेर।                   

स्रोत
  • पोथी : अंतस दीठ ,
  • सिरजक : रचना शेखावत ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन,जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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