म्हूँ कणेर शमसाँण री
म्हूँ गवाह हूँ
जीवण और मरण रै
इण घमसाण री।
म्हूँ कितरा ही आँसू देखूँ
सिसक्यां हिचक्यां
नीत पीठूं हूँ
म्हूँ नित मर मर नै
जीवूं हूँ
म्हार कनै
चिता री लपटाँ
छूट्यो छूट्यो सो
धुँओ घणौ है
म्हैं या जाणूँ
कळी बणी जिणनै
खिलणो है
सह कर सगली
लूआँ लपटाँ
एक दिवस
नीचे खिरणो है
खिल कर खिलणो
खिर कर खिलणो
या है रीत जहान री
म्हूँ कणेर शमसाँण री
म्हूँ पिछाण हूँ
जीवण रै अरमान री।
राम नाम ने सच
बतलाता
वै जो साथै साथै आया
दुनिया री बातां में
रमग्या
बैठ रूँख री ठंडी छायाँ
एक घड़ी पेलां रुकगी
जो जीवण-धारा
बहवा लागी
जितरी मूँडा उतरी बातां
या टोली फिर
कहवा लागी
निंदा रो रस
हँसी–ठहाका
ही-ही-हट्ठा
हाका-वाका
बीच बीच में
एक निजर
लपटां रै कांनी
ठण्डी साँसाँ
और छनी सी
बाताँ स्याँणी
देर–सबेर
रोज देखूँ हूँ
ये सगली करतूतां
म्हूँ इनसान री
म्हूँ कणेर
शमसाँण री।
काम होयग्यो
रामां-सांमी करनै
सै जण लगा बिछड़वा
सोग-वियोग झाड़ कर जाणै
पाछा भाग्या भव में पड़वा
पण मैं भागूँ कठै?
कियां मैं भागूँ सकूँ हूँ?
मैं भी चावूँ
किणी बाग में डेरो होतो
होता केई फूल संगेती
कोयल रो
पगफेरो होतो
मधरी बहती पून जगाती
कोई कंवळा हाथ तोड़ता
माळा-सी मैं
बण-ठण जाती
इणरै आगे
सोच सकूँ न्हीं
नीचे राख देख कर
मन नै
यूँ समझाऊँ-
या पूँजी है
राव रंक
सुरतांण री।
म्हूँ कणेर
शमसाँण री।