कालजिया री कोर कँवरी सासरे चाली
दायजा रा लोभी दुष्टां जीवती ही बाळी
जनम हुयो जद छायो हरख अपार
बाबोसा बोल्या है लिछमी आई अपणे द्वार
दीप संजोयां अतरा ज्यूं आई दीवाली
नेह नीर सींच सींच मोटी करी डाळ
वर ने वां सूँपी देख'र देह रो उछाळ
खिल्याँ बिना खिर गई फूलां री डाळी
कंकुपगल्या धरतां—धरतां पूगी सासरे
हिवड़ाँ में हेत लियां मन में आस रे
पूनम री रात बणगी मावस काळी
सगळो समाज मिल करो थे उपाय
घर री या लीछमी ईं'नै बाळो मती लाय
घर री लीछमी बाळ्याँ कियां आसी खुसहाली।