छूट्यो छूट्यो रे सहेल्यां को साथ-

पोळ छूटी बाबूल की॥

आंबा हालो खेत छूट्यो गुण की लीमूण जी।

सत्यां का चूंतरा छूट्यो कुआ की जामूण जी।

गेला गड़ारा की छुटी करबो बात

पोळ छूटी बाबूल की॥

नायां की रुकमणी छूटी खात्यां की कैलासी जी।

तेल्यां की या मांगी छूटी मेहरां की संतोसी जी।

जोड़ायत बेणियां को छूट्या हाथ

पोळ छूटी बाबूल की॥

खाज्यो पीज्यो मोज्या मांणज्यो सुख को आवे ना छोर जी

सदा हीं मिल जुड़ के रीज्यो राखी अर गणगौर जी

भायां भायां में ना हो वे कदी घात

पोळ छूटी बाबूल की॥

स्रोत
  • पोथी : कळपती मानवता मूळकतो मनख ,
  • सिरजक : रामदयाल मेहरा ,
  • प्रकाशक : विवेक पब्लिशिंग हाऊस, जयपुर
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