म्हारी अणपढ़ मा

जणां कणै घरां

म्हारै कमरै में

किणीं रद्दी कागद रो

देखती कोई टुकड़ो

उण नै साम्भ’र

ऊंचो राख देंवती।

म्हारी अबोली बेटी

अखबार रा टुकड़ा

अंवेर लेवै आज

जिण में होवै छप्योड़ो

कोई मोवणो चितराम

उण नै लखावै

सगळा चितराम

भगवान जी रा होवै

जाण'र बा

उणां नै आदर सूं

थरप देवै

घरां बण्योड़ै

ठाकुर जी रै छोटै थान में।

म्हैं अर म्हारी जोड़ायत

घर रा बाकी भण्या-गुण्या

इण रद्दी कागदां री

ओळपंचोळी कटिंगां नै

रत्ती भर नीं समझां

नीं कदै

आं रो सार जाण्यो

म्हे तो फगत जाणां

वेलिडिटी पार रो है सो कीं।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 6 ,
  • सिरजक : धनपत स्वामी ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’
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