खुद बण जावै

छप्पर आप

खुद भूखो रैवै

जद तक टाबरां नैं

नीं आवै धाप

सरदी, गरमी, बिरखा

हर मैसम रै मांय

खुद भलै हो उगाड़ो

पण टाबरां नैं

गाभा पैरावै आप

आप लेवै तद डकार

जद बेटा, बेटी खावै धाप

ईं खातर कीं म्हारी भी सुणो

म्हारी दीठ में

महताऊ है बाप

महताऊ है बाप।

स्रोत
  • पोथी : हूं क तूं राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : नगेन्द्र नारायण किराडू ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन
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