कहदौ डंकै री चोट

मारवाड़ नहीं रहसी ठोट

अब म्हें सूता नहीं रहांला

गांव-गांव बात कहांला

पैला काढौ घर री खोट

मारवाड़ नहीं रहसी ठोट।

जगां-जगां स्कूल खुलावौ

अरजी दौ आवाज उठावौ

मरद बणौ मत बाजौ फोट

मारवाड़ नहीं रहसी ठोट।

सुणजो रै कालेजी छोरा

अब थे थोड़ा हुईजो दोरा

लो जुम्मेवारी री पोट

मारवाड़ नहीं रहसी ठोट।

गरमी री छुट्टियां में जावौ

पढ़णौ-लिखणौ उठै सिखावौ

कुछ दिन खावौ जाडा रोट

मारवाड़ नहीं रहसी ठोट।

सुणो जवानां म्हारी बात

परिसद रौ थे दीजौ साथ

आवौ मरदां बांध लगोट

मारवाड़ नहीं रहसी ठोट।

मारवाड़ नै फरज सिखावौ

अरजी दौ आवाज उठावौ

तकलीफां री करौ रपोट

मारवाड़ नहीं रहसी ठोट।

लोक हितेसी पंच चुणौ सब

परजा हित री बात सुणौ सब

सोच समझकर दीजौ वोट

मारवाड़ नहीं रहसी ठोट।

स्रोत
  • सिरजक : जयनारायण व्यास ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै