धधक रैयी है
जुगां-जुगां सूं
रूं-रूं में...
ऊंडै अन्तस में
आदम तिरस,
कै पी जाऊँ
सात समन्दां नै
चळू-चळू
बण'र अगस्त्य ऋषि..!
लपेट लूं
सावण रा सतरंगा बादळ
तन पर...
रूई रा फवा बणाय'र
घिस-पीस'र
आखै चन्दण बन नैं
थेथड़ लूं डील पर।
बर्फानी हवा नैं
बसा लूं साँस-साँस
जे आ ई अगन
बण जावै-
सिरजण री अगन
तो रचीज जावै
नूंवा छन्द।