धधक रैयी है

जुगां-जुगां सूं

रूं-रूं में...

ऊंडै अन्तस में

आदम तिरस,

कै पी जाऊँ

सात समन्दां नै

चळू-चळू

बण'र अगस्त्य ऋषि..!

लपेट लूं

सावण रा सतरंगा बादळ

तन पर...

रूई रा फवा बणाय'र

घिस-पीस'र

आखै चन्दण बन नैं

थेथड़ लूं डील पर।

बर्फानी हवा नैं

बसा लूं साँस-साँस

जे अगन

बण जावै-

सिरजण री अगन

तो रचीज जावै

नूंवा छन्द।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : लक्ष्मीनारायण रंगा
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