छोरै नैं

नित पढ़ावूं

इतियास।

पण, उण नैं नी मतळब

अकबर-बाबर

नैं राजा-सांमत सूं...!

ओपरी निजरां

जौवती रेवै।

म्हारै चेहरै री

दोजख-चिंत्यावां

नैं इतियास बखाण,

खंखेरती रेवै

म्हारै अंतस भावां नैं,

गैली पण

समदरस मानतावां रै

चारै रा।

उडता पानका

बूझता रेवै म्हा सूं

म्हारो इतियास,

मिनखपणै री जात...!

हंकारै में हालती

उण री नाड़

धूजती रेवै

चाबी वाळै रमतियै दांई।

जाणैं हरीस चन्दर कै

फकीरै राजा री

कहाणी केवतो होवूं म्हैं...।

आंख्यां रा भूंवता कोइया

पूछता रेवै म्हनै

रुबिया रै

अपहरण रो इतियास,

कै चावै।

सोवियात संघ री

खतम होयैड़ी

सार्वभौमिकता माथै

म्हारी टीप...।

उण नैं नीं मतळब

खेजड़ां निचै थरपीजेड़ै

मालासी-बायांजी सूं

कै बांरै/महताऊ परचां सूं

बो जाणनो चावै

कै। बांरी मूरत्यां में लागेड़ै

गळगचियां सूं

सिली-माटै, रो खेल

कुण

कद-कद जीत्यो,

ग्रिनीज-बुक में

किण रो नांव लिखीज्यो...?

उण नैं।

नीं मतळब

कोलम्बस री खोज

कै। पिरथीराज रै

अचूक निसाणैं सूं...

बो तो थरपणो चावै

म्हारै मन रै विग्यान

भूगोल री लहरां

जाणनो चावै

राजनीति रै

दाव-पेचां रो इतियास

नैं

म्हारै गाभां मांय रो

विस्वास...।

पण कियां पर कासूं

इण

संविधानी अधिकारां सूं

बंधेड़ै

अडाणै रै इतियास नैं...।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थळी – राजस्थानी मांय लोक चेतना री साहित्यिक पत्रिका ,
  • सिरजक : रवि राजपुरोहित ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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