काळजा में चालती, दुधार देखल्यो।

तिल देख्यां सागै, तिल री धार देखल्यो॥

तनां-मनां कै आडी, लोगां भींत खींचली,

पाड़ौसी हेलो पाड्यो, तो आंख मींचली,

कुण है कुण सूं कमती आर-पार देखल्यो॥

भर जिनगानी काळी-पीळी धूणी में घुटी,

लाय सूंजे बचगीं, चौड़े आबरू लुटी,

द्रोपदी रो चीर, तार-तार देखल्यो॥

कोयली कूकावै, चील कागला तिरै,

जण-जण जैर भरेड़ो, मौत साथ में फिरै,

आंख्यां तकती कांवळां री डार देखल्यो॥

जात-पांत, धर्म भेद, मद भाषा को बढ्यो,

हाथां ले हथियार भाई, भाई पर चढ्यो,

सोळा आनां सांच नित अखबार देखल्यो॥

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : सम्पत सिंह ‘सरल’ / सम्पत सरल ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
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