इण नगर,
इण डगर
यो किस्यो मिनख
मौत सूं डरै
बेमौत मरै।
रगत रंग्यै भैरूं रै
भरम रो भाटो सो
गोळ-मटोळ।
इण भोम
सगळा बीर
कुण बणै कबीर?
गांव बैठ्या गादड़ा
जीमै खीर,
जापै मंतर
करम रै कबूतरां नै
धरम रा
दाणा न्हाकै।
चिड़्यां सूं चांच लड़ावै
आगलो भंवत्तर
कींकर सुधरै?
मौत री
मोख्यां सूं
झांकती मिनक्यां
बैठै दापळकर।
जमराज री न्यूंत
खांगी कूंत
सरगड़ो स्यामी
शंकर भगत
घेरै है गंडक अर सूरड़ा
कबूतरां नै बचावण नै
पून्न कमाण नै
अेकूं-अेक
वंश वैर
किण रै हाथां
किंण री खैर?
किण नै देख
कुण सो भाजै
सगळा इकसार
कुण कींसै लाजै?
कीड़्यां रै नाळ उपरां
ढांप नै राखीजैड़ो ढ़ीरो
दाणां-दळिया सूं चैठी कीड़्यां
लामी पंगत
मांया चालै
ढीरा री छत्तर छायां
घूमर घालै
कोट कांगरां री
लीक-लिकोळ्यां
मांडती
मिनख रो
जमारो भांडै
जावो रै बाळ्यो
जामण जाया सूं
लगा’र
अपणा-परायां तकात
आपोपरी
लड़ो, कटो अर मरो
थां सू
अर
थारै नगर सूं
म्हारो कीड़ी नगरो ही आच्छ्यो
जिका मांय
सुख, सांयत अर संपत तो है।