बादळां पाछी ठंड करदी रे, बादळां आछी ठंड कर दी।

मोट्यारां रै मजो, लागरी बूढ़ां नै सरदी॥

टाबर रमता फरै उगाड़ा, रांकड़-कांकड़ दौड़ै।

जीं रे नी घाबा री सगवड़, कई पहरै कई ओढ़ै॥

धरती करै बिछावण ऊंची है छाया छप्पर री।

धनै दया नी रै डाकीड़ा, उड़ै हवा रै घोड़ै॥

दीन दुख्यां पै गजब ढा रैयो, बणग्यो बेदरदी।

मोट्यारां रै मजो, लागरी बूढ़ां नै सरदी॥

जीं रे घर व्है कुलथ-बाजरी, वीं रै घर खींचड़लो।

दाळ-ढोकळा, माल-मोकळा, जीं निबजावै तिलड़ो॥

मक्की निपजी व्है तो खावै सेकी फूल्या-धाणी।

चणा-गेहूं री बणै घूगरी, अर रोटो बेजड़ रो॥

करी मावटो, कीच पावटो, गडारा भर दी।

मोट्यारां रै मजो, लागरी बूढ़ां नै सरदी॥

घर धणियाणी, कूड़ै पाणी, जाय कियां टाबर ले।

ग्वाळ्या भूखा, ढोर डांगरा गोटै बैठ्या घर ले॥

धक-धक धूजै टेटा-लरड़ा, ग्वाड़ा में बरड़ावै।

वांको राम रुखाळो, थूं तो जो चावै जो करले॥

उगतड़ा चांदा-सूरज नै पहरा दी वरदी।

मोट्यारां रे मजो, लागरी बूढ़ां नै सरदी॥

स्रोत
  • पोथी : आखर मंडिया मांडणा ,
  • सिरजक : फतहलाल गुर्जर ‘अनोखा’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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