मिळिया तौ करो रे लोभीडां
अपणै आप सूं।
प्यारी रै मन पीव मिलण री
मावड़ पूत सपूत सूं।
ग्यांनी रै मन गुरू मिलण री
पिंडत मिंत प्रवीण सूं।
बिणज करणिये नै नहिं बेळा
जर आछटतै सूप सूं।
करम खेत रा खांतीलां री
राह मिळै ना रूप सूं।
भरियौ पाव आध नै निरखै
पूण पुरीजै आप सूं।
मद री मांखी मद में डूबी
पार पड़ी न पांख सूं।
मिळियां तौ करौ रे लोभीड़ा
अपणै आप सूं।
मिनख मिनख री मजबूरी रौ
गाहक बण गरवीजै।
मजबूरी मोटी मांनेतण
ओढै नितरा पीळा
करमी धरमी पिंडत जोधा
खपग्या के खांतीला।
पगड़ी साटै पीळौ आवै
जद मांनेतण धीजै
साटै सारू हाटां जावै
पांणी पुरसां छीजै।
मिनख मिनख री मजबूरी रौ
गाहक बण गरबीजै।
बिना जुगत जाजम नहिं जमणी
इसौ जगत रौ धारौ
अटकळ बिन आंटौ नहिं आवै
कर कर मैनत हारौ।
बिन जुगती के खप खप मरग्या
धाप धान नहिं खायौ।
घर सायर मिनखां रै घाटौ
सांसै राज जमायौ।
जुग रै मठ री जुगत पुजारण
नखरा जो नर झेलै।
सगळै ही थोकां समरथ व्है
निरभै पासा खेलै।
आखर री औकात किती सी
रस रसणा री धारां
बिन बींध्यौ मोती किम सोहै
सरसत हंदै हारां।
सर सारा भाथोड़ भरीज्या
कोइक पारथ साधै
दस मुख सूंटी इमरत कूंपौ
कोइ रांम नै लाधै।
जीवण सधियां आखर साधै
अरथ न आय उधारा।
जूंझारां री जांन गयां बिन
सजै न सीस उतारा॥