भस्या गाड़ा में 'छाजळा' कौ

कांई बोझ।

या कैणावत लड़ाती री

छाजळा कौ लाड़

ईं मीठी मनुवार कै पांण

घणा हरख सूं छांटतौ रैयौ

नाज में सूं अळियाण

झूलतौ रैयौ कंवळ्यां हाथां का

मदगाळा हींदळा पै लाडां-कोडां

चूड़ा-चूड़ियां की मीठी खणक सागै

करतौ रैयौ घूमर नरत

पण जद सूं 'रेडीमेड' नै धास्यौ

घर में कुसूण्यौ पांव

छाजळी होग्यौ बेकार

टांड पै अेक खूणै पड़्यौ

गिणै छै आखरी सांसां

आंख्यां पै पूर दिया

मकड़्या नै अणमाप जाळा

कै टाबरां नै बांधली डोर

बणाल्यौ घींसोड़ौ, गाड़ोल्यौ

ठरड़्यां-ठरड़्यां फरै छै

आखा गरयाळा में

बड़ा लोगां कही 'बारा बरसां में रेवड़ी की बी चेतै छ।'

पण हाय रै दुरभाग

जुगां सूं अळ्या नै सळ्यौ करतां

तोड़ी छाती, पण फेर बी

चेतबौ तौ दूरै

खुद अेक रेवड़ी होग्यौ बापड़ी छाजळौ।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच राजस्थानी भासा अर साहित्य री तिमाही ,
  • सिरजक : मुकुट मणिराज ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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