फूलां री सौरम ज्यूं,

अदीठ

पण, भाखर स्यूं भारी,

हुवै चींत।

चींत रै ताण

ताणीजै ताणो

मिनख रो, समाज रो,

आखै जगत रो।

सौधीजै सौरफ,

सगळी जीया जूण री

चींत रूखाळै, पाळै,

सम्हाळै,

मानखो।

देवै दीठ जीवण रै,

उजळै परख री।

समंदर स्यूं ऊंडी,

आभै स्यूं ऊंडी,

आभै स्यूं ऊंची,

मरूथल रो रूंख,

हुवै चींत।

ढूंढै जीवण,

मौत री काळी

गार मैं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : प्रहलादराय पारीक ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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