जद

कनै नीं हुवै,

आंख्यां मांय

बसै मां।

छुट्टी वाळै दिन

तावङो आंवण तक

नीं जागै बीनणी

कोई फरक नीं पङै

मां नै,

बेगी उठै

पण

बिस्तर नीं छोडै

डरै

हाको नीं हो जावै कठैई

चाय पींवण री हूंस होतां थकां

बीनणी नै जगावै कोनी,

बोली-बाली उडीकै

बीनणी रै दिनूंगै नैं

घङी कानी सोधती।

मांय सूं सरमीजती

बीनणी उठै

कैवै

‘आज मोङो होयग्यो

थानै चाय नीं दे सकी,

अबार लावूं...’

चाय पींवती

‘मां साव कूङ बोलै

म्हारी आंख भी आज

कीं मोङी खुली’।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2016 ,
  • सिरजक : राजेश कुमार व्यास ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी
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