रोजीना थारै सबदां बींध्योड़ी चालणी

म्हारै मन में बण जावै

थूं जाणनो चावै कम अर बतावणो चावै घणो।

म्हारै करियोड़ै कारज में

थूं खोट जोवै

अर कसरां बांचै...

म्हैं जाणूं हूं, पण चावूं-

थूं थारी सरधा सारू इयां करतो रह।

म्हारै काळजै में चालण्यां बधती जावैला

काल थारा कांकरा अर रेतो

म्हनैं आं चालण्यां सूं छाणना है।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : नीरज दइया ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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