इण धरती माथै

फूल अर कांटा दोनूई बिछ्योड़ा है

पण समझदार मिनख

कांटा रै चूभण री परवा नीं करता थकां

कांटा माथै पग धर नै

सावचेती सूं फूल चुण लेवै

अर बांरी सुगन्ध समाज में भी बिखेर देवै

पण करमहीण मिनख

कांटा माथै चाल’र खुद तो लोई लुवाण

हुवै पण बिछ्योड़ा कांटा नै फेरूं

जादा बिखेर नै

दूसरां रै वास्तै दुखड़ो इज पैदा करै

दोनूं मिनखां रै चालण चालण में

फरक है।

अेक खुद नै दुख देवै

अर दूसरां नै भी,

पण दूसरो कांटा माथै चालतां

थकां भी औरां नै

खुशबू अर प्यार देवै।

स्रोत
  • पोथी : हाड़ौती अंचल को राजस्थानी गद्य ,
  • सिरजक : अमृतसिंह पंवार ,
  • संपादक : श्रीलाल नथमल जोशी ,
  • प्रकाशक : शिक्षा विभाग राजस्थान के लिए उषा पब्लिशिंग हाउस, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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