कैवतां

आंख्या धकै आय जावै

हुबोहुब दरमाव

जांणे कोई आजकाल री बात व्है!

मारग

के जिकी खांधां माथै उखणियां

मुड़दा माटी

भूडापा रौ खोळयौ पैर्‌‌यां

अैचबेच सूं

किणी झंझाळ री गळाई

सांम्ही आयग्यौ हौ

अेक राजकंवर रै

गौतम नै रुळायग्यौ

बुद्ध नै बणायग्यौ

बुद्ध रै बरसां पूठै

दोवड़ावै है वौ रौ वौ दरसाव

मारग

नित-रोज मिळै है सांम्हौ

उखणियां मुड़दा माट्यां

अठातांई

के चबड़ेधाड़ै निजरा सांम्ही

खुद करतौ

जीवता मिनख री माटी

बणतौ पग-पग माथै मसांण

मारग

अर मिनख

चिमक-चिमक

रासौ रोज निरख

बातां रै रेजळै पड़्या

भूडावै है

भूडावै है

है अजतांणी

हौ ज्यूं रौ ज्यूं पट्ठौ मारग त्यार

बुद्ध नै मार

हां, बुद्ध रौ मारग है

बौध रौ मारग कोयनी!

स्रोत
  • पोथी : मारग ,
  • सिरजक : चन्द्र प्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : देवल प्रकाशन
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