अबै म्हैं सड़कां माथै नीं जाय सकूं
म्हारी कमर मोटी व्हेगी है,
आंख्या नीचे गै'रा काळा खाडा बणग्या है
यां सगळां नै देखतां म्हनै लाज आवै
पण फूलां सू भर्योड़ी अेक डोलची लावौ
अर म्हारै खनै, साव म्हारै खनै उणनै धरौ।
बाजां माथै धीमी-धीमी कोई मीठी धुन सुणाऔ।
उणरै सारू, फकत उणरै सारू
म्हैं संमदर में डूबणी चावूं
म्हैं म्हारी देही नै गुलाब सूं सजावूं
अर सोवतां उणनै सुणावूं अमर-गीत
हरयाळी में बैठ'र घंटां म्हूं संचती रैवूं सूरज रौ ताप
के म्हारै मांय फळ-रस सरीसौ
इमरत धुळ जावै।
चीड रा जंगळां सूं आवतौ बायरौ
म्हारै मुख नै हेमळ बणाय जावै,
उजास अर बायरौ म्हारै रगत नै
जाड़ौ अर सुद्ध कर देवै
उणनै निरमळ बणावण सारू
म्हैं अबै नीं तौ घिन करूंला अर नीं गपसप।
करूंला फकत प्रेम,
क्यूं कै इण सांयत में, इण अेकांत में म्हूं
बुण रह्यी हूं अेक सरीर
तूंतड़ां सूं बणी अेक अदभुत देही
एक उणियारौ आंख्यां
अर हिड़दै निस्पाप।