अबार

बगत लिखै

म्हारै चैरै रै पानां,

जज्बातां रौ

झाळमुख

कीं पळ

आपरै लेखै

मूंडै री कंवळाई सूं

मैळ खावती

कुंपळ सूं

पण कालै

जद

झुरियां रौ राज होसी

कंवळे-कोमल

चीकणै गालां—

तद चैरौ

खुदोखुद

खुली किताब बण जासी

कोई बांचौ

कोई मोड़ौ-तोड़ी

किणी विध

किणी ढब चाहै!

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : रवि पुरोहित
जुड़्योड़ा विसै